Tuesday, March 31, 2020

पांचाली का दांव - paanchali ka daaw - hindi kavita - हिंदी कविता

पांचाली का दांव


हस्तिनापुर छोड़, पाण्डव नव नगरी जब आये,
छोड़ कौरव, बन्धु - बान्धव संग तब लाये।
देख इन्द्रप्रस्थ, चकित रह गया दुर्योधन
अपमानित करने को आतुर उसका ईर्ष्यालू मन।।

द्यूत क्रीडा करने की उसने घृणित चाल अपनाई,
मामा शकुनि संग आमंन्त्रण की तुच्छ नीति बनाई।
एक ओर पारंगत शकुनि, नवसिखिये पाण्डव दूजे,
स्वाभाविक था आश्चर्य, पाण्डव क्रीडा में कैसे कूदे।।

एक-एक संपत्ति दाव लगा, युधिष्ठिर सबकुछ हार गये,
ये पाप, असत्य बढ़ना था, जो धर्मराज मतिमार गये।
भ्राताओं संग द्रौपदी, अन्त समय वो हार गये...,
अवसान समय क्रीडा के, धर्म, सत्य सब स्वर्ग सिधार गये।।

जीत देख कौरव की, मांमा-भांजे लगे मन-मन हरषाने,
केश खींच सभा में दुःशासन, लगा द्रौपदी तब लाने ।
खिन्न हुआ सभा मण्डल, छाने लगा अंधियारा...,
आन छोड़ जब लगा स्ववचन युधिष्ठिर को प्यारा ।।

होने लगा चीरहरण तब, निःसहाय पड़ी पांचाली का,
अश्रुधारा बह उठी सभा में, पांडव संग जग-माली का।
हे रक्षक! हे गोकुल नन्दन! हे गोपाल! तू ही परमेश्वर,
द्रवित हुआ हृदय प्रभु का, दिया उचित पांचाली को वर।।

जब-जब स्त्रीत्व का अपमान हुआ इस नगरी में,
तब-तब प्रकट हुए क्रुद्ध प्रभु, एक छोटी सी गगरी में ।
प्रभु! कृपा करें, हो गयी जड़ बुद्धि इस तुच्छ दास की,
भव सागर पार लगावें, अथवा करावें तैयारी वनवास की।।

।। इति।।


      -  मुकुंद 

Sunday, March 29, 2020

hindi kavita - वो






रूह भी साथ छोड़ने को तत्पर थी जहाँ
उनको वहाँ मैंने  अपने सबसे पास देखा है

कहते खूब है इश्क नहीं नफरत है तुमसे
पर  नज़रो में  उनकी खुद को ख़ास देखा है

कौड़ी भी मुनासिब न समझी मुझे आजतक
मेरी जली रोटी में उन्हें खुशमिज़ाज़ देखा है

मकान सूना बताते है मुझ संग वो अपना
पर दुनिया छोड़ उन्हें मेरे ही आस पास देखा है

और फासला बढ़ा बोले की अब हाल न पूछूँगा
पर मिलने की बेसब्री और उनका साज़ देखा है

- मानसी पंत 

Saturday, March 28, 2020

Hey nari - हे नारी - hindi kavita

हे नारी


आत्म -संयमियो का
संयम तेरे आगे डोला है
तुलसी, सूर, कालिदास भी
तेरी जय-जय बोला है
यही सोचता हूँ 
क्या तू ही अबला है ?

पुरातन में
रामायण, महाभारत
तूने ही करवाये है
पृथ्वीराज, राणा रतन को
युद्ध तूने ही हरवाये है
तेरे रूप भी तो विरले से
फिर भी, क्या तू ही अबला है

जानना चाहता हूँ
तेरे रंग में, रूप में, काया में
चुंबकीय क्षेत्र का
मान कितने टेस्ला है ?
तेरे रूप अनेक इस मंचन में
बस तू ही श्रेष्ट नायिका
सर्वसम्मति का
यही अघोषित फैसला है

तेरे मोहपास में
फसने वाला हर नर पगला है
लगता है
तेरे आकर्षण में, जड़ होने का
मेरा नंबर अगला है

यही यक्ष प्रश्न
कचोट रहा मन को अब भी
हे नारी !
हे बला ! क्या तू ही अबला है  ?

-मुकुंद 

Friday, March 27, 2020

Hindi Kavita - Vo krishan - वो कृष्ण

वो कृष्ण


वो कृष्ण, उनकी शाख में 
मैं मीरा, बेल सी समाई हूँ 
 धूप, आँधी, मेघ, हलाहल 
से निपट कर आयी हूँ 

बन कभी शबरी यक़ीनन 
बेर तो न चख सकी 
पर खाद, पानी, रोशनी 
चख-चख के उन्हे खिलाई हूँ 

वो कृष्ण, उनकी शाख में 
मैं मीरा, बेल सी समाई हूँ

            -मानसी पंत 



ये कविता मुझे मानसी ने भेजी है अगर आप भी मुझे अपनी कविता भेजना चाहते है तो आप मुझे dailylifeexperience05@gmail.com पर भेज सकते है।

Thursday, March 26, 2020

hindi kavita - pahad - पहाड़

ओ पहाड़

ओ पहाड़ कैसा है तू ?
क्या तेरे वहाँ  सब ठीक है ?
क्या तुझे छोड़ के जाने वाले लोग
तुझे देखने वापस आते है ?

या

फिर देवता की पूजा और मसाण पूजने तक
ही रह गया है उनके लिए अस्तित्व  तेरा !

ओ पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की 
पहाड़ की ज़िन्दगी, पहाड़ में ही रुक जाये
फिर कोई पहाड़ी भाबरो को भाग जाये
कोई  फैक्ट्री उसका सारा खून चूस जाए
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
हर पहाड़ी पहाड़ में ही  रुक जाये 

पूरी गंगा बांधो से न ढक जाए  
जमुना कही परदेश जाकर न बिक जाये
पहाड़ो की बर्फ पहाड़ मे रुक जाये 
कोई पहाड़ी पहाड़ छोड़ कर न जाये
ओ  पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की
पहाड़ की ज़िन्दगी पहाड़ में ही रुक जाये 

पहाड़ कही बस बूढ़ो का ठिकाना
ही होकर न रह जाये 
सारे आमा-बुबु की ऑंखे अपने नातियों का
इंतज़ार करते-करते ही न बंद हो जाए 
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में ही  रुक जाये

न जाने क्यों पहाड़ी अपने पुरखो के
खून को भूल गए है, न जाने क्यों !
क्यों भूल गए की उनके पुरखे पत्थर पर भी
नाज़ उगने की कला जानते थे
अपनी इस काबिलियत को हर पहाड़ी समझ पाए
ओ  पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की
पहाड़ की ज़िन्दगी पहाड़ में ही रुक जाये


पहाड़ का पानी भी परदेश जाकर बिकता है
पहाड़ की हवा उससे भी कीमती है
पहाड़ के मौसम का हर कोई दीवाना
ये बात हर एक पहाड़ी समझ जाये तो
पहाड़ की भूमि कभी परदेशी को न बिक पाए
उसमे भी हर जगह पत्थरो के जंगल  उग जाये
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में ही रुक जाये

कही पहाड़ बस टूरिस्ट प्लेस बन कर न रह जाये
ऊंची ऊंची इमारतों के बीच कही
पाथर वाले मकान न खो जाये
मोमो, चौमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर ही न पहाड़ मे छा जाये
कही कटक वाली चाहा को पहाड़ी न भूल जाये
 इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
हर पहाड़ी पहाड़ में ही रुक जाये

पहाड़ का पहाड़ी भी अपनी पहचान बना पाए
पहाड़ का स्वाद चखा पाए
आलू के गुटको संग भाग की खटाई का स्वाद 
अपनी भट की चड़क्वाणी, मादिरे का भात
नौले का पानी , माल्टा-नीबू सान के खाने का स्वाद


ऐ पहाड़ कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में रुक जाए।









Wednesday, March 25, 2020

hindi kavita - tum kaho - तुम कहो


तुम कहो


तुम कहो तो टूट कर ,
तुम्हारे कदमो में बिखर जाऊं 

तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हे को 
गजलों में सजाऊ 

है खवाहिश आरजू 
मेरी भी जब  से तुमको देखा है 

अगर हो इजाजत 
तुम्हे लबो पर सजा के गाऊ

                                             - अनिल

Tuesday, March 24, 2020

hindi poetry - hindi kavita - Ae dost - ऐ दोस्त

ऐ दोस्त 



मेरे हालातो से वाकिफ हो,
फिर भी पूछते रहते हो क्या हाल है
मेरे पास जिसका कोई जवाब नहीं
यार ये वही सवाल है

यू तो मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता हूँ
पर अपनों के आगे मैं मज़बूर हूँ
जो मेरे अपने है मुझे अपना मानते है
उन्ही से मै कोसो दूर है

काश मेरी ज़िन्दगी में
यार ये मज़बूरिया न होती
तुम मेरे पास होते तो
हमारे दरमिया ये दूरियाँ न होती

मैंने हर सजदे में
 खुदा से तुम्हारा दीदार मांगा है
हर दुआ में ऐ दोस्त
तेरे लिए खुशियों का संसार माँगा है

तुम रहो सदा आबाद
हम  तो दुनिया को अलविदा कहना चाहते है
मर कर भी ऐ दोस्त
तुम्हारी यादो में ज़िंदा रहना चाहते है

                - अनिल 

Monday, March 23, 2020

Hindi poetry - हिंदी कविता - pahad ki hariyali - म्यर पहाड़ (mera pahaad )

म्यर पहाड़(मेरा पहाड़) 


पत्थरों के इस जंगल में
एक पेड़ की तलाश कर रहा हूं
मैं पहाड़ का वो पंछी हूं जो इस जंगल में
ना जाने क्यों हरियाली की आस कर रहा हूं

भटक गया हूं इस जंगल में
जो रोशनी को निगल गए है 
और अपनी छाव में भी ये
ज्वालामुखी से उबल रहे है

इस जंगल की हवा इतनी जहरीली
की समय से पहले बूढ़ा रहा हूं
खाने के नाम पर हर दिन अपने भीतर
जहर ही में खा रहा हूं

पानी पीने के नाम पर भी पता नहीं
ये शहर हमको क्या पीला रहा है 
रहने को तो यहां रहा हूं पर मुझको
तो पहाड़ अपने पास  है बुला रहा है


मै पहाड़ का वो पंछी हूं
जो इस जंगल में हरियाली की आस कर रहा हूं
पत्थरों के इस जंगल में 
पेड़ की तलाश कर रहा हूं



Sunday, March 22, 2020

hindi kavita - हिंदी कविता - Ae zindagi - ऐ ज़िन्दगी

ऐ ज़िन्दगी आज हम भी शराब पीकर आये है
थोड़ी नहीं हम तो बेहिसाब पीकर आये है

ऐ ज़िन्दगी सुना है तुझे खुद पर बड़ा गुरूर है
मयखाने में जाकर पूछो हम भी बड़े मशहूर है

ऐ ज़िन्दगी उजालो में  न सही अंधेरो में रह लूँगा
तू चाहे जितना सितम कर हँसते हँसते  सह लूँगा

इतना आसा नहीं है ऐ ज़िन्दगी  मुझको झुकना
मुझे बखूबी आता है गम-ए -रंज  में मुस्कुराना

तुझे जितना गुरूर है मुझे तुझ से ज्यादा गुरूर है
ये दिवाना ऐ ज़िन्दगी जमाने में हद से ज्यादा मशहूर है 

हमने गम-ए -रंज का एक बना रखा है जहां ज़िन्दगी 
हमको  समझ पाना तेरे बस की बात है कहां है ज़िन्दगी

माना ऐ ज़िन्दगी तूने अपना फ़र्ज़ निभाया है
शुक्रिया ऐ ज़िन्दगी तूने ही गमो में रहना सिखाया है
                                                     
                                                             -  अनिल
                         

Saturday, March 21, 2020

hindi kavita - Mulakaat -मुलाक़ात

 मुलाक़ात

जो गुनाह किये ही नहीं उनकी सजा पा रहा हूँ मै
सुन ज़िन्दगी आज तुझे ही छोड़ कर जा रहा हूँ मैं

दुनिया के रस्मों रिवाज़ से मुक्त होना चाहता हूँ
थक गया हूँ अब चिर निंद्रा मे सोना चाहता हूँ

मौत की गोद में बैठ ज़िन्दगी से दूर जा रहा हूँ  मैं
ऐ ज़िन्दगी तुम्हे छोड़कर मौत के पास जा रहा हूँ मैं

मैं ज़िन्दगी को पाने की चाहत को लिए फिरता रहा
ज़िन्दगी मेरे हाथ न आयी संभालता और गिरता रहा

ज़िन्दगी तुम्हे चोर कर जा रहा हु तो रंज मत करना
मैं तुम्हारे साथ चल न पाया तुम संभलकर चलना

खुदा ने चाहा तो फिर किसी दिन हमारी बात होगी
अब जा रहा हूँ  फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी 

                             -अनिल 

photography - Ursa major star- सप्तऋषि तारामंडल





                                                             सप्तऋषि तारामंडल (Ursa  Major)

Tell about this constellation whatever you know.


Friday, March 20, 2020

hindi poetry- hindi kavita - zindagi -ज़िन्दगी

ज़िन्दगी के रंगमंच पर
हर किरदार निभाना पड़ता है 

काँटों में  से फूल चुनकर 
हर लम्हा सजाना पड़ता है 

सिर्फ सांसे चलने को
 ज़िन्दगी नहीं कह सकते साहेब 

ज़िंदा दिखने के लिए
गमो मे भी  मुस्कुराना पड़ता है 

 ज़िन्दगी तो यही  है साहेब 
यहाँ चलते जाना पड़ता है  



Thursday, March 19, 2020

HINDI POETRY- हिंदी कविता -ZINDAGI-ज़िन्दगी







कुछ इस तरह से ज़िन्दगी को,
       गुजरा जा सकता है 
जीने के लिए कुछ ख्वाहिसों को
      मारा जा सकता है 

चाहत को मिटा कर ज़रूरत को 
       पला जा सकता है 
ज़िंदगी के मुश्किल दौर में खुद को 
      संभाला जा सकता है 

सूरज के बिना जुगनू से भी 
काम चलाया जा सकता है 
अँधियो के आगे अड़ कर 
चिरागों को बचाया जा सकता है। 

                - अनिल सिंघमार 


Wednesday, March 18, 2020

hindi kavita - mann ki kuntha - मन की कुंठा



हिम्मत तो नहीं हारा हूँ मै 
 पर आज रोने का मन है 
अपने आँसुओ की माला बना 
इनमे अपने सपने पिरोने का मन है 

हार रहा हूँ मै मन से पर
हिम्मत से नहीं हारा हूँ मै 
किस्मत है मेरी दगाबाज पर 
उम्मीदों के सहारे न हूँ 

दूसरो का सहारा न सही 
खुद का सहरा तो हूँ 
आँसुओ को बहाने को ढूढ़ता
 न काँधो का सहरा मैं  हूँ 

दूसरो की आशाओ पर न सही 
खुद की आशाओ पर खरा उतरा हूँ 
अपनी ज़रूरतों के लिए
 दूसरो  का मुँह न ताकता मै हूँ 

भूतकाल को भूल कर अपने 
भविष्य की ओर अग्रसर तो हूँ 
ऐसा तो नहीं की हार मान के 
खुद से ही रूठा में हूँ 

पराजय स्वीकार कर ली है 
पर विजय की आस को भूला न हूँ 
सपनो पर कायम इस दुनिया में 
खुद के सपनो को न भूला में हूँ 

हारा था, हारा हूँ और फिर से  हारूँगा
पर कभी तो सफलता के पैर मैं भी पखारूँगा 
यही बात सोच के आज लिखने का मन कर गया 
आज फिर से रोने का मन कर गया। 










Tuesday, March 17, 2020

buraash - बुरांश




इस लाल फूल की कहानी भी क्या खूब है नाम है बुरांश ।
 सबको अपनी और आकर्षित करता है फिर चाहे  वो मानव हो या हो पक्षी या फिर हो तितली या भँवरा  या कोई जानवर । सबको पसंद आता है ये।
 सबको अपनी और बुलाता है जैसे कहता हो! आओ एक बार मुझे पास से देख जाओ, मेरा स्वाद चख लो , दूर कही से भी देख कर आप पहचान जाएंगे की ये फूल खिल चूका है, इसका लाल चटख रंग पूरे जंगल को लाल कर देता है और इसके धरती पर गिरे हुए फूल पूरी जमी को लाल कर देते है, इतना लाल की इसका जंगल दूर से देखने पर पूरा लाल ही दिखाई दे , चारो और बस यही फूल, इसका चटक रंग मानो लाल गुलाल।
 इसको छूने पर  ऐसा लगता है एक अलग ही ठंडक अपने अंदर लिया हुआ है , मानो पहाड़ की जाड़ो की  ठण्ड को अपने मे भर लिया हो और चारो और अपनी चमक के साथ गर्मी आने का संदेश दे रहा हो।

Monday, March 16, 2020

hindi kavita - kaliya - कलिया



कालिया भी आज खिलने से डरने लगी
हर पल ज़िन्दगी घुट घुट कर मरने लगी।

हुनर यहाँ आया नहीं किसी को जीने का
मज़ा ही अलग होता है गमो को पीने का।

गमो को पीकर ज़िन्दगी मैने  किनारा पाया है
अँधियो के शहर मे मैने चिराग जलाया है।

मै चट्टानों से टकरा तूफ़ानो काट आगे अड़ा हूँ
ये ज़िन्दगी सुन मैं मेरी उम्र से बहुत  बड़ा हूँ।

ज़िन्दगी हेर मोड पर अपनों से धोखा खाया है
इसलिए आज मैंने मने ये दर्द भरा गीत गया है।

लोग मेरे गीत को सुन मन ही मन मुस्कुराते है
कहा सब लोग मेरे जज़्बातों को समझ पाते है।


                                             - अनिल सिंघमार 

Sunday, March 15, 2020

HINDI POETRY - हिंदी कविता - GURU - गुरु


गुरु 


गुरु बिना कौन गुरुत्व को पाता है ?
पात्र वही इसका , जो गुरु को भाता है।
प्रमाणित हुआ यही चिरकाल से,
छद्म-वेशी कर्ण भी ना बचा गुरु-श्राप-भाल से।

बताओ सर्वश्रेष्ठ कौन धनुर्धारी था ?
वीर प्रसूता इस पावन धरा का,
गुरु-सान्निध्य पा अर्जुन ही भारी था।

अभागा एकलव्य वही इस जगत का,
जो नर होकर भी गुरु कृपा न पाता है।

गुरु-छत्र न जिसने पाया हो,
कीर्ति-सुयश की अमर पताका,
दिग-दिगन्त वह फहरा न पाता है।

हिंदी कविता 

Friday, March 13, 2020

baccha banne ka man hai - बच्चा बनने का मन है।


















खेलने का मन है, कूदने का मन है
आज फिर बच्चा बनने का मन है
दौड़ने का मन है चिखने चिल्लाने का मन है
बिना डरे जिंदगी जीने का मन है
क्योंकि आज मुझे जीने का मन है 
आज मुझे बच्चा बनने का मन है

ये जीना भी क्या जीना था 
जिसमें ना भविष्य कि चिंता थी
ना भूतकाल के दुखो का रोना था
बस आज था और अभी में जीना था

खेलो का कोई अर्थ नही था
ना तो उनमे जीतना, ना हारना था
बस कुछ खेल थे जो खुशी के लिए थे
खुशी थी जो इन खेलों में थी
हर कोई सहयोगी हो जाता था 
प्र्तिददिता कि कोई जगह नही थी

बारिश थी और उसकी बूँदे थी
एक नाव थी बिना पतवार की
बहती थी जो पानी के साथ
और हम दौड़ते थे उस नाव के साथ

उस समय बारिश में भीगने मे खुशी थी
आज है बारिश में भीगने का डर
उस समय खेलने मे खुशी छुपी थी
आज हार-जीत में खुशी और गम

समय आगे बढ़ता जा रहा है 
और हम उसमें उलझ जा रहे है
बचपन से दूर हो हम कही न कही
खुद से दूर होते जा रहे है

आज मै इस को देख चाह रहा हूँ 
एक बार फिर अपने बचपन से जुड़ना
जब जिंदगी बस एक खेल सी थी 
और हम बिना किसी किरदार के थे।

Thursday, March 12, 2020

photography - Apno ki yaad - अपनो की याद


वो दूर कही ,कुहासे की चादर के पार, कही पर
मेरा भी एक घर बसता है । जहाँ कुछ मेरे चाहने वाले मेरे आने का इंतजार करते है और जहाँ न जा पाने कि खीज
मुझे इस जगह, बार बार खींच लाती है ।

गम हो या खुशी का पल या बस ऐसे ही, सब एक जश्न कि तरह यही पर मनाया जाने वाला ठहरा।।
ये अकेला खड़ा पेड़ मेरे अकेलेपन का साथी बन जाता है ।



Wednesday, March 11, 2020

Hindi poetry uljhan उलझन

उलझन

कभी  किसी ने हाथ झटका,
कोई अब भी साथ दे रहा है।
इसी चिंतन में व्यस्त हूँ साहब,
भगवान तू चाह क्या रहा है ।।

कंटकों से भरे सफर में ....
यूँ अनमनाया ही चल रहा हूँ।
समय के गर्भ में लिखा क्या है,
ये बस संकेतकों से ही पढ़ रहा हूँ।।

छोर पे धुँधला ही नजर आ रहा है,
बता नही सकता वास्तविकता क्या है।
सकारात्मकता है या नकारात्मकता,
कह नही सकता इसका परिणाम क्या है।।

गतिशील ही है सब समय के साथ,
मैं बस उसका ही अनुकरण कर रहा हूँ।
लौ बुझ रही या है जल रही इसीलिए,
धरा के इस खेल को नमन कर रहा हूँ।।

दिवास्वप्न में यूँ ही खो रहा हूँ,
शुरुआत हो रही या हो रहा अन्त है।
उलझन यही है कि बस..... बस.....,
पतझड़ है या आने वाला बसन्त है ।।

बीहड़ों को चीरते हुए.....
गीत गुनगुनाते चल रहा हूँ।
आश्रय की तलाश में बस,
अभी तक हाथ मल रहा हूँ।।

Tuesday, March 10, 2020

Hindi poem - Holi or vo - होली और वो


   होली और वो

होली का पहला गुलाल जो
तेरे गालो पर मैंने न लगाया 
तो बता क्या है होली !

तेरे माथे पर सजा गुलाल आज
मैने अपने हाथो से न लगाया
तो बता क्या है होली !

तेरी चुनर को जो मैने,
आज खुद से ना भिगाया
तो बता क्या है ये होली !

तेरी पिचकारी का पहला फुहार
जो मुझसे न टकराया 
तो बता क्या है ये होली !

तेरे हाथों से बनी ताजी गुजिया
 को जो न मै चख पाया
तो बता क्या है ये होली !

तेरे रंग से भरी काया को जो
आँखों से न रंगा देख पाया
तो बता क्या है होली !

तुझे छुप-छुप के जो अपने
गले से न लगा पाया 
तो बता क्या है होली !

तेरा संगी बन जो न 
दूजो से होली मिल पाया
तो बता क्या है होली !

तुझसे दूर रह जो
होली मैं मजा आया
तो बता क्या है होली !

                 -  अक्श 

Monday, March 9, 2020

Ek or dhalti shaam kay saath mai एक और ढलती शाम के साथ मै




 ये ढलती शामो को एकटक निहारना
और इन शामो का अंधियारे में
कहीं धीरे से गुम हो जाना
क्या खूब है इनका मिजाज़

एक अलग  तरह की शांति
हमारे  शरीर मे भर देना
जिसको बया कर पाना
लगभग असंभव सा है

सूरज की उन आखरी किरणों का
हमारे आँखों पर पड़ना 
और वो ठंडी बयार का
हमारी शरीर का हमारे छूना 

सब कुछ वहीं है पर
कुछ भी ना होने का एहसास
इस अंधियारे कि चादर का
सब कुछ अपने में छुपा लेना

हमारे उन रिश्तों की तरह है
जो मौजूद होतेे हुए भी
कही गुम से हो गए है।
जो वजूद में तो है 
बस अपना अस्तित्व भूल गये है।।






Sunday, March 8, 2020

Hindi kavita -हिंदी कविता-aaj kalam se kaagaz pe viswash likh raha hu - आज कलम से कागज पे विश्वास लिख रहा हूँ।

आज कलम से कागज पे विश्वास लिख रहा हूँ।
अस्कों से भीगे हुए अहसास लिख रहा हूँ।
वक्त से दब गए थे जो लम्हे उन 
कुछ एक लम्हों का आगाज लिख रहा हूँ।

अंजाम की परवाह नहीं है मुझे 
बस ख्वाइसों की दरकार है
मेरे सपनों की उड़ान से तेज 
इस समय की रफ्तार है।

मुखातिब होने को कल से 
मैं यथावत चल रहा हूँ।
मुनासिब होने को सब से 
व्यथा की अनल में जल रहा हूँ।

मुक्ति का मार्ग कठिन है
व्याकुल मन पर संशय है
पर अनिमेष चला हूँ मैं 
मेरा अस्तित्व अभय है।

अपने सपने बुनने के लिए 
अभी सागर मथना बाकी है
अपना जीवन गढ़ने के लिए 
अभी सार्थक चलना बाकी है।

यद्यपि चलना दूभर है
सूरज सर के ऊपर है
पर सविवेक चला हूँ मैं
मेरा व्यक्तित्व निर्भय है।

कल की चिंता उद्विग्न कर देती है
सरल मन को विच्छिन्न कर देती है
तब समेटता हूँ खुद को मैं
जब यथार्थता खिन्न कर देती है।

अब ललाट को चमकाना है
और भय को धमकाना है
अब निर्भीक चला हूँ मैं
मेरा लक्ष्य विजय है।
                 - कुलदीप कार्की

                   

हिंदी कविता hindi kavita - MAI LIKHTA AYA HU


 मैं लिखता आया हूँ


मैं लिखता आया हूँ
कोरे कागज पे अक्सर 
अपने भीतर के अवसाद को
खालीपन के उन्माद को
जो भी लाज़मी लगता है
बस लिखकर भुला देता हूँ।

मैं लिखता आया हूँ
अपने मन की अवधारणाएँ 
अपने अस्तित्व की गाथाएँ
जो कल की धूप में 
बर्फ की तरह पिघल जाती हैं
जो बहती रेत सी थामने पर
हाथों से फिसल जाती हैं।

मैं लिखता आया हूँ
अपने भीतर का दर्द 
खुद के अंदर का मर्द 
जो क्षणिक ही सार्थक लगता है
परिस्थितियाँ बदल जाने पर
जो ओझल सा हो जाता है।

मैं लिखता आया हूँ
अपने मन की आहतें
अपना अकेलापन
जो संसार की भीड़ में भी
शिथिल पड़ा रह गया है।
जो दिनचर्या के क्रम में
फँसकर रह गया है।

मैं लिखता आया हूँ
गरीबी की दरकार पर 
यौवन की हुंकार 
जो एक असम्यक जिद है  
वक्त के आड़े आती है 
असंभव से लगने वाले कल को
आज में बदल जाती है।

मैं लिखता आया हूँ
समाज के अभावों को 
मनुष्यों के स्वभावों को 
जो ढुलकते रहते हैं
सुख की ढ़लान पर 
और रुक जाते हैं 
सफलता की प्रभुसत्ता पर।

मैं लिखता आया हूँ
भविष्य की खोज में जुटी
अवैधानिक रास्तों से निकलकर आती हुई
लंबी भीड़ की दास्तां
जो एकाएक बढ़ती चली जाती है
एक अंतहीन काफिला बनाती है।

मैं लिखता आया हूँ
और शायद लिखता रहूँगा
तब तक जब तक 
मेरा आध्यात्म जिंदा रहेगा
तब तक जब तक 
जीवन का ये दौर चलता रहेगा।
                    
                   

Saturday, March 7, 2020

बादलो का मिज़ाज़








लगता है आज बादल कुछ और ही मूड से आए है , आज ये आस्मां से नहीं धरती से मिलना चाहते है।   अपने असली वज़ूद को भूल कर, ये भी पानी बन बहना चाहते है। 
आप प्रकृति के कितने भी नज़दीक क्यों न रहते हो , प्रकृति हर बार आपको आश्चार्यचकित कर ही देती है। सालो तक इससे जुड़े रहने बाद भी, आप ये नहीं कह सकते की है, मैं  इसके मिज़ाज़ को समझ गया हूँ। 

ऐसा नज़ारा बहुत काम ही देखने को मिल पाते है। सही  समय पर, सही जगह और सही चीज़ के साथ होना ज़रूरी है, ऐसे नज़रो को अपने पास संजो के रखने के लिए। 

                                                       क्या कहते है?

पहरेदार



                                                               पहरेदार 


  इस फोटो को खींचते समय मुझे उन बच्चो  की याद गयी , जो किसी खाने की चीज़ को बनता देख , इतनी बेसब्री से इंतज़ार करते है की वो चीज़ जैसे ही चूल्हे से उतरे, तो सीधे वो खा ले। 

अगर उस खाने की चीज़ को बनाने वाला गलती से भी उनको ऐसा करते देख ले, तो इतनी मासूमियत के साथ अपनी नज़रे उससे चुरा लेते है जैसे की उनको फर्क  ही नही पड़ता की क्या बन रहा हो पर बनाने वाला उनकी बेसब्री को समझ जाता है और हल्की सी मुस्कान के  साथ उनको देख कर हँस जाता है और उनको उनका हिस्सा देकर विदा कर देता है।

वही बेसब्री मुझे इस पहरेदार में भी नज़र आयी।  जो दूध को एकटक उबलता हुआ देख रही थी और मैंने जैसे ही इसको देखा इसने अपना मुँह ऐसा फेर लिया जैसे इसको कुछ फर्क ही न पड़ता हो। 



Friday, March 6, 2020

Hindi kavita - हिंदी कविता -Hey Sundari - हे सुन्दरी!

हे सुन्दरी!
व्याकुलता न बढ़ाओ मेरे हृदय की |
आनन्दित, प्रफुल्लित और रक्त संचरित होता तन में ,
जब ये दृग देख ही लेते हैं, तुम्हें इस संसार उपवन में ।
तुम्हे पाना , न पाना नियति - गर्भ में छोड़ चुका हूँ ,
विवश हूँ, व्याकुल हूँ, सो सारे बन्धन तोड़ चुका हूँ ।
मेरे यत्र-तत्र मृग-मरीचिका ही बन, तुम फिर रही हो,
शीतलता लिये हुए फिर भी, हृदय में नीर सी गिर रही हो।।

यद्यपि रात्रि-चातक हूँ, पिपासा है कि बढ़ ही रही है ,
धीरे-धीरे ही सही पर ये आखें, तुम पर ही अड़ रही हैं।
अरुणिमा कहूँ, चाँदनी कहूँ, या कहूँ तुम्हें पुष्प-लता ?
रे मन के सारथी अब इस, प्रश्नचिन्ह का उत्तर तू ही बता ।
हे सुन्दरी!हे सुन्दरी!हे सुन्दरी!ये कैसी दुविधा है हाय री ।।

नयनों की निद्रा तो अब ,अवश्य कुपित ही हो गयी है ,
खिलना है, या मुरझाना है, जो भी है ये उमंग नयी है ।
है आशा अभी नहीं, लेकिन प्रत्युत्तर का आकांक्षी हूँ ,
असीमित, अनंत नभ का मैं उड़ता हुआ एकल पक्षी हूं ।।

यदि तुम्हारे और मेरे मध्य ,स्तर की ये दरिया न होती,
तो ये व्यग्रता, उदासीनता, यूँ घुट-घुट कर शीश झुका न रोती ।
उच्चस्तर, निम्नस्तर, स्तर - स्तर का ही ये अनोखा इक खेल है,
अन्यथा लोग चाहे कितना भी, अन्ततः यहां होता ही मेल है ।
हे सुन्दरी!हे सुन्दरी!हे सुन्दरी!ये कैसी दुविधा है हाय री ।।

हे प्रिये !!
व्याकुलता न बढ़ाओ मेरे हृदय की |

                                   - मुकुन्द



ये कविता मेरे मित्र बालमुकुंद सिंह बोरा दवारा लिखी गयी है। धन्यवाद बोरा जी  




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