तन्हा ज़िन्दगी
तन्हा ज़िन्दगी को कलम से
गुलजार कर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी से मिले ग़मो से
भरपूर प्यार कर रहा हूँ मैं
मुझे समझ पाना थोड़ा
मुश्किल है ज़माने के लिए
बाहर से हरा-भरा हूँ
अंदर से तिल -तिल मर रहा हूँ
- अनिल
No comments:
Post a Comment