Wednesday, March 18, 2020

hindi kavita - mann ki kuntha - मन की कुंठा



हिम्मत तो नहीं हारा हूँ मै 
 पर आज रोने का मन है 
अपने आँसुओ की माला बना 
इनमे अपने सपने पिरोने का मन है 

हार रहा हूँ मै मन से पर
हिम्मत से नहीं हारा हूँ मै 
किस्मत है मेरी दगाबाज पर 
उम्मीदों के सहारे न हूँ 

दूसरो का सहारा न सही 
खुद का सहरा तो हूँ 
आँसुओ को बहाने को ढूढ़ता
 न काँधो का सहरा मैं  हूँ 

दूसरो की आशाओ पर न सही 
खुद की आशाओ पर खरा उतरा हूँ 
अपनी ज़रूरतों के लिए
 दूसरो  का मुँह न ताकता मै हूँ 

भूतकाल को भूल कर अपने 
भविष्य की ओर अग्रसर तो हूँ 
ऐसा तो नहीं की हार मान के 
खुद से ही रूठा में हूँ 

पराजय स्वीकार कर ली है 
पर विजय की आस को भूला न हूँ 
सपनो पर कायम इस दुनिया में 
खुद के सपनो को न भूला में हूँ 

हारा था, हारा हूँ और फिर से  हारूँगा
पर कभी तो सफलता के पैर मैं भी पखारूँगा 
यही बात सोच के आज लिखने का मन कर गया 
आज फिर से रोने का मन कर गया। 










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