Thursday, April 9, 2020

tanha zindagi - तन्हा ज़िन्दगी

तन्हा ज़िन्दगी


तन्हा ज़िन्दगी को कलम से 
गुलजार कर रहा हूँ मैं 
ज़िन्दगी से मिले ग़मो से 
भरपूर प्यार कर रहा हूँ मैं 

मुझे समझ पाना थोड़ा
 मुश्किल है ज़माने के लिए 
बाहर से हरा-भरा  हूँ 
अंदर से तिल -तिल मर रहा हूँ 

                   - अनिल 

Wednesday, April 8, 2020

Bharat mata - भारत माता

भारत माता 

मेरी कलम वीर शहीदो का ,
 जय गान लिखेगी 
भारत माता की गौरव गाथा
 का यशगान लिखेगी 

मेरी कलम इस मिट्टी का 
स्वाभिमान लिखेगी 
इंक़लाब के स्वरों में 
जय हिंदुस्तान लिखेगी 

कोई गीत नहीं है मेरी 
मीठे छंदो की परिभाषा में 
आँसू की पीड़ा को गाया है 
अंगारो की भाषा में

 माता शारदे वर दे गाता रहूँ 
मैं होकर सदा अमर 
कलम मेरी शब्द-शब्द में बोले 
भारत माता की जय 

Tuesday, April 7, 2020

kirdaar- किरदार

अधूरे इश्क़ की कहानी का 

एक किरदार हूँ मैं 

महोब्बत में फ़ना हुए 

इश्क़जादो की मज़ार हूँ मैं 

जुदाई-ए -गम से तराशा है 

उस परवरदिगार ने मुझे 

ऐ ज़माने वालो देखो मुझे 

कितना शानदार हूँ  मैं 

Monday, April 6, 2020

gamo - ग़मों




ग़मों की सुर ताल पर 
दर्दो की धुन बजाऊ क्या !
आँखों के पानी को 
संगीत में सजाऊ क्या !

कितना दर्द दिया है 
ऐ ज़िन्दगी बताऊ क्या 
दर्द भरी चीखों को 
गीत बनकर सुनाऊ क्या 


- अनिल 

Sunday, April 5, 2020

zamana - जमाना




तकलीफे तो बहुत मिलती रही है मुझे जमाने में 
खुद के गम भूला बैठा हूँ मैं अपनों को मनाने में।।

खता इतनी हुई की सब  पर एतबार किया मैंने 
ज़िन्दगी दाव पर लगा दी गैरो  को अपना बनाने में।। 

मोहब्बत के फूलो से बगिया को महकाना चाहा था 
किसी ने कसर नहीं छोड़ी राहो में कांटे बिछाने में।। 

उम्र भर दूसरो के दर्द को कम करने की कोशिश की 
पर जमाना लगा रहा मेरे जख्मो में नमक लगाने में।। 

ज़िन्दगी में कोई हमसफ़र नहीं मिला अपने बेगानो में 
अब कोई आरजू नहीं रही मेरी ज़िंदा रहने की ज़माने में।। 

-अनिल 

Saturday, April 4, 2020

रिश्ते - Rishtay




कौन किसके लिए जीता है आज ज़माने मे 
उम्र गुजार देते है लोग चंद सिक्के कमाने में।।

एक पल भी लगता नहीं तोड़ने में रिश्तों को 
मैने तो उम्र लगा दी दिलो को करीब लाने में।।

अहमियत ही ना रही अपनी पराये की आज 
सभी लगे हुए है दिखावटी रिश्ते निभाने में।।

जो खुद रिश्तो की कसौटी पैर खरे उतरे नहीं 
आज वही लोग लगे हुए है मुझे आजमाने में।। 

                                 -अनिल  

Friday, April 3, 2020

कलम - pen


कुछ लोगों के लिए कलम बस
लिखने के काम आती है
पर मेरे लिए तो ये अपने
जज्बात बया करने का तरीका है

वो जज्बात जो कही अंदर
ही मेरे दबे रह जाते है
वो जज्बात जिनको कोई और
समझ नहीं पाता है

मैं नहीं बोल पाता हूँ
इसीलिए मेरी कलम बोलती है
मै खुद को बया नहीं कर पाता 
इसीलिए मेरी कलम बया करती है

मैं नहीं रो पाता हूँ
इसीलिए मेरी कलम रोती  है
मैं नहीं हँस पाता
इसीलिए मेरी कलम हँसती है

मेरे कागज गीले हो जाते है
उन पर लिखे शब्दों की स्याही
कही और बिखर जाती है
और उन कागजो का गिलापन
मेरी कलम दूसरों तक ले जाती है

मेरे दर्द बया होते है
बिना आवाज मेरी कलम से
मेरी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने का
जरिया बन जाती है मेरी कलम

दूसरों के आंखो में आँसू 
भी ले आती है ये कलम
क्योंकि उनके जज्बातों को जगाना
अच्छे से जानती हैं ये कलम

धीरे धीरे संघर्ष करते हुए
 अपना भी खत्म हो जाती है
और फिर से एक नया रूप ले
मेरे पास वापस आ जाती है  कलम

इसलिए कहता हूँ  होगी ये
तुम्हारे लिए बस लिखने की चीज
पर मेरे लिए ये अभिव्यक्ति का माध्यम है 
जिसमें मेरी ज़िन्दगी का सार छूपा है


Thursday, April 2, 2020

सुकून - sukoon - hindi kavita


जब होंठो से लगाया तुम्हें पहली बार,
वो अजीब सा अहसास, एक सुकून दे गया।

लेकिन एक डर भी था,
जमाने से कहीं ज्यादा घर वालों का,
तुम्हारा-मेरा यूँ छुप-छुप मिलना,
शायद किसी को पसंद न था।

 मेरे लबों पे तुम गर्मी का अहसास जो दे जाती,
नशा तुम्हारा था ही कुछ ऐसा।।

तुम्हारे आगोस में आते ही,
मैं सब कुछ भूल बैठता.....
मिलन की उस छोटी सी बेला में,
मेरे लिये तुम खुद मिट जाती थी।

समय बीतता गया.....
आखिर तुम्हें सरकार और समाज ने सार्वजनिक रूप से बैन कर दिया,
और हम भी बेवफा हो गये.....

इस तरह तुम्हारा-मेरा सालों का रिश्ता टूट ही गया।
एक दर्दनाक अंत
        मेरी प्यारी सिगरेट .......

-मुकुंद 


Wednesday, April 1, 2020

हम पहाड़ी ठैरे - हिंदी कविता - Hindi kavita



हम पहाड़ी ठैरे
इफरात चाहने वाले ठैरे
समाज में रहने वाले ठैरे
ईजा, बौज्यू , जेठ ईजा , जेठ बौज्यू,
दाज्यू, दीदी , भुली, कैंजा , आमा, बूबू
चचा , चाच्ची , दगड़िया
इनमें हमारा पराण बसा ठैरा।

चहा और कटक के साथ 
फसक मारने वाले ठैरे
अपने ठुलों के आगे 
खिचर्याट नहीं करने वाले ठैरे।

हमारे संस्कार हम में ईजा बाबू ने 
स्युन के लम्याव झपका के भरे ठैरे
हम ग्यूं मडवे की चुपड़ी रोटी खाकर 
बड़े होने वाले ठैरे
बौज्यू मुनटोप देकर और 
ईजा घुनटोप देकर 
हमें पालने वाली ठैरी।

कक्षा बार तक हम 
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले ठैरे
फिर झोला -झंडी थमा के 
चल देने वाले ठैरे शहर 
साप बनने के लिए
छोड़ देने वाले ठैरे 
ईजा और पहाड़ को
गठिया बात की शरण 
और बाबू को भंगाडों में 
प्याज गोड़ने के लिए।

शहर जाकर साप बनकर 
हम हल्द्वानी में ज़मीन खरीदने वाले ठैरे
फिर वहीं बस जाने वाले ठैरे
अपने अस्तित्व को छोड़कर।
ईजा गोर- बाछ कहाँ छोड सकने वाली ठैरी
उनको भी तो उसने ममता से पाला ठैरा
माँ की वेदना पता ठैरी ईजा को
कभी-कभी गठिया बात के इलाज के लिए 
वह हमारे यहाँ आने वाली ठैरी।

बाबू बुड्याँकाव सब अकेले 
देखने वाले ठैरे।
साप बन के ईजा -बौज्यू ,रिश्तेदार -बिरादर 
पूँण- पांछि , ईष्ट- दिबात ,बाण-कुषाण,
छौव-मषाण और ये मायालु पहाड़ 
सब भूल जाने वाले ठैरे
फिर बुड्याँकाव पश्चाताप में अठवार देने
हाट कालिका आने वाले ठैरे हम 
क्या खाक पहाड़ी ठैरे।

                      -कुलदीप कार्की

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tanha zindagi - तन्हा ज़िन्दगी

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