वो कृष्ण
वो कृष्ण, उनकी शाख में
मैं मीरा, बेल सी समाई हूँ
धूप, आँधी, मेघ, हलाहल
से निपट कर आयी हूँ
बन कभी शबरी यक़ीनन
बेर तो न चख सकी
पर खाद, पानी, रोशनी
चख-चख के उन्हे खिलाई हूँ
वो कृष्ण, उनकी शाख में
मैं मीरा, बेल सी समाई हूँ
-मानसी पंत
ये कविता मुझे मानसी ने भेजी है अगर आप भी मुझे अपनी कविता भेजना चाहते है तो आप मुझे dailylifeexperience05@gmail.com पर भेज सकते है।
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