लगता है आज बादल कुछ और ही मूड से आए है , आज ये आस्मां से नहीं धरती से मिलना चाहते है। अपने असली वज़ूद को भूल कर, ये भी पानी बन बहना चाहते है।
आप प्रकृति के कितने भी नज़दीक क्यों न रहते हो , प्रकृति हर बार आपको आश्चार्यचकित कर ही देती है। सालो तक इससे जुड़े रहने बाद भी, आप ये नहीं कह सकते की है, मैं इसके मिज़ाज़ को समझ गया हूँ।
ऐसा नज़ारा बहुत काम ही देखने को मिल पाते है। सही समय पर, सही जगह और सही चीज़ के साथ होना ज़रूरी है, ऐसे नज़रो को अपने पास संजो के रखने के लिए।
क्या कहते है?
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