Monday, March 9, 2020

Ek or dhalti shaam kay saath mai एक और ढलती शाम के साथ मै




 ये ढलती शामो को एकटक निहारना
और इन शामो का अंधियारे में
कहीं धीरे से गुम हो जाना
क्या खूब है इनका मिजाज़

एक अलग  तरह की शांति
हमारे  शरीर मे भर देना
जिसको बया कर पाना
लगभग असंभव सा है

सूरज की उन आखरी किरणों का
हमारे आँखों पर पड़ना 
और वो ठंडी बयार का
हमारी शरीर का हमारे छूना 

सब कुछ वहीं है पर
कुछ भी ना होने का एहसास
इस अंधियारे कि चादर का
सब कुछ अपने में छुपा लेना

हमारे उन रिश्तों की तरह है
जो मौजूद होतेे हुए भी
कही गुम से हो गए है।
जो वजूद में तो है 
बस अपना अस्तित्व भूल गये है।।






No comments:

Post a Comment

Blog Archive

tanha zindagi - तन्हा ज़िन्दगी

तन्हा ज़िन्दगी तन्हा ज़िन्दगी को कलम से  गुलजार कर रहा हूँ मैं  ज़िन्दगी से मिले ग़मो से  भरपूर प्यार कर रहा हूँ मैं  मुझे समझ...