Thursday, March 26, 2020

hindi kavita - pahad - पहाड़

ओ पहाड़

ओ पहाड़ कैसा है तू ?
क्या तेरे वहाँ  सब ठीक है ?
क्या तुझे छोड़ के जाने वाले लोग
तुझे देखने वापस आते है ?

या

फिर देवता की पूजा और मसाण पूजने तक
ही रह गया है उनके लिए अस्तित्व  तेरा !

ओ पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की 
पहाड़ की ज़िन्दगी, पहाड़ में ही रुक जाये
फिर कोई पहाड़ी भाबरो को भाग जाये
कोई  फैक्ट्री उसका सारा खून चूस जाए
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
हर पहाड़ी पहाड़ में ही  रुक जाये 

पूरी गंगा बांधो से न ढक जाए  
जमुना कही परदेश जाकर न बिक जाये
पहाड़ो की बर्फ पहाड़ मे रुक जाये 
कोई पहाड़ी पहाड़ छोड़ कर न जाये
ओ  पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की
पहाड़ की ज़िन्दगी पहाड़ में ही रुक जाये 

पहाड़ कही बस बूढ़ो का ठिकाना
ही होकर न रह जाये 
सारे आमा-बुबु की ऑंखे अपने नातियों का
इंतज़ार करते-करते ही न बंद हो जाए 
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में ही  रुक जाये

न जाने क्यों पहाड़ी अपने पुरखो के
खून को भूल गए है, न जाने क्यों !
क्यों भूल गए की उनके पुरखे पत्थर पर भी
नाज़ उगने की कला जानते थे
अपनी इस काबिलियत को हर पहाड़ी समझ पाए
ओ  पहाड़! कुछ ऐसा कर दे की
पहाड़ की ज़िन्दगी पहाड़ में ही रुक जाये


पहाड़ का पानी भी परदेश जाकर बिकता है
पहाड़ की हवा उससे भी कीमती है
पहाड़ के मौसम का हर कोई दीवाना
ये बात हर एक पहाड़ी समझ जाये तो
पहाड़ की भूमि कभी परदेशी को न बिक पाए
उसमे भी हर जगह पत्थरो के जंगल  उग जाये
इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में ही रुक जाये

कही पहाड़ बस टूरिस्ट प्लेस बन कर न रह जाये
ऊंची ऊंची इमारतों के बीच कही
पाथर वाले मकान न खो जाये
मोमो, चौमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर ही न पहाड़ मे छा जाये
कही कटक वाली चाहा को पहाड़ी न भूल जाये
 इससे पहले कुछ ऐसा कर दे की
हर पहाड़ी पहाड़ में ही रुक जाये

पहाड़ का पहाड़ी भी अपनी पहचान बना पाए
पहाड़ का स्वाद चखा पाए
आलू के गुटको संग भाग की खटाई का स्वाद 
अपनी भट की चड़क्वाणी, मादिरे का भात
नौले का पानी , माल्टा-नीबू सान के खाने का स्वाद


ऐ पहाड़ कुछ ऐसा कर दे की
 हर पहाड़ी पहाड़ में रुक जाए।









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