Thursday, February 27, 2020

hindi kavita हिंदी कविता -: काबिल kabil

  काबिल 



तेरी नजरों मे खुद को काबिल  बनाते बनाते
हम खुद में कुछ ऐसा कर गए
 कि,
तेरी नजरों मे काबिल  न बन सके तो क्या ,
न सही,  
पर हम खुद में काबिल तो बन  गए।।

तेरी  गलतफहमी दूर नही हुई अभी भी ,
हम आज भी नाकारे ही  है तेरी नजरों में।
और अब तो, और अब तो,
हम भी नही करेगे, तेरी गलतफहमी  दूर करने कि  कोशिश,
क्योंकि अब हम  भी समझदार हो गए है।।

दूर करके करूँ भी क्या,  ये तो बताओ। 
तू मेरी काबिलियत नापने का  बनाएगा,
फिर  से एक  नया पैमाना।
और मैं  फिर से करूँगा,
उस पैमाने मे खरा उतरने कि, एक नयी कोशिश ।
वो भी खुद कि खुशी  से समझैता करके ,
सिर्फ  और सिर्फ  तेरी खुशी के लिए।

और तेरे लिए ,मेरी खुशी का क्या पैमाना  ?
क्या मेरी खुशी,   कुछ नही तेरे लिए ?
हाँ  
शायद नही हूँ,  मैं कुछ तेरे लिए
और न ही मेरी खुशी कुछ भी तेरे लिए।

क्योंकि हम सिर्फ  नाकारे है ,तेरी नजरों में
और कुछ भी कर ले, नाकारे ही रहेगे तेरी नजरो में ।।


पर अब समझ गया हूँ  तुझको भी मै,
तभी  छोड दिया साबित करना खुद को मैने।
क्योंकि इस साबित करने और होने के खेल मे
हमेशा तेरी जीत और मेरी हार पक्की है।।
वो भी सिर्फ  इसलिए  कयोकि
मै कुछ भी कर लू,
काबिल नही बन पाऊगा तेरे लिए।।


पर  सुन, शुक्रिया तेरा ,
मुझे एहसास कराने को
कि मैं इंसान हूँ ,सामान नही
जो पूरा करता फिरू ,तेरे हर पैमाने को
पर अब तू जा मुझे तेरी जरूरत नही क्योंकि ,
अब मैं समझ चुका अपने पैमाने को।।

पैमाना !
 हाँ  पैमाना कि,
मैं जैसा भी हूँ , खुश तो  हूँ
अब खुद को समझता हूँ 
अपनी खुशी के लिए जीता हूँ

पैमाना  
कि अब,
मेरे पास है ,मेरे चाहने वाले
मेरा हर कदम साथ निभाने वाले
मेरी काबिलियत बताने वाले
मुझे जीना सिखाने वाले
बिना बात हँसाने वाले
और अगर  रूठू तो मनाने वाले


अब मुझे खुद को साबित करना नही
और किसी  के काबिल  बनना नही

क्योंकि मैं एक इंसान हूँ  सामान नही।।।

Tuesday, February 25, 2020

HINDI KAVITA-:हिंदी कविता Tu hai kaha तू है कहाँ ?

           तू है कहाँ ?                              



धूप में भी तू है और छाँव में भी तू
शहर में भी तू है और गाँव में भी तू
मेरे इर्द- गिर्द ही तू रहता है
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

मुझ में भी तू है सब में भी तू
कल में भी तू था अब में भी तू
अनायास ही मुझसे गुजर जाता है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

बिंब भी तू है और प्रतिबिंब भी तू
भिन्न भी तू है और अभिन्न भी तू
मेरी सार्थकता का आग्रह है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

यथार्थ भी तू है यथार्थता भी तू
परमार्थ भी तू है जिज्ञासा भी तू
मेरे ज्ञान की पराकाष्ठा है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

छूटा भी तू है और काबिल भी तू
खोया भी तू है और हासिल भी तू
मेरे चेहरे के लकेरों की थाप है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

दरिया भी तू है साहिल भी तू
रक्षक भी तू है कातिल भी तू
मेरे जख्मों का मरहम है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ  ?

प्रशंसा भी तू है और अभिशंसा भी तू
मन भी तू है और मंशा भी तू
लिलार से गिरते केशुओं की उत्कंठा है तू
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

परलोक भी तू है धर्म भी तू
कृतार्थ भी तू है मर्म भी तू
हर इंसान बस तुझको ही खोजता आया है
पर ये तो बता तू है कहाँ ?

मुझमें समाया तू मेरा हमसाया तू
मुझसे भरमाया तू मुझसे शरमाया तू
मुझमें होकर तू मुझको नहीं दिखता है
अब ये तो बता तू है कहाँ ???


                            - कुलदीप कार्की








कुलदीप कार्की जी का बहुत-बहुत आभार, मुझे अपनी लिखी कविता भेजने के  लिए। 


Monday, February 24, 2020

Hindi kavita - हिंदी कविता - SAFALTA सफलता

सफलता 


अगर सफल बनो, तो इस कदर
की अपनी सफलता में , 
दूसरो के लिए प्रेरणा और
खु द के लिए शुकून तलाश पाओ।


वरना  सफल इस जमाने में  बहुत है
जिनकी शुकून की तलाश अब भी जारी है।


आँखों में नींद तो बहुत है, न जाने  कब से
पर चैन की नींद की तलाश, अब भी जारी है।


खाने को बहुत है, खिलाने को भी बहुत है
पर और, और ज्यादा की तलाश अब भी जारी है।


अपने को भूल बैठा है, इस माया में  फस कर
और अपनों की तलाश अब भी जारी है।


अकेला होने से डरता है
दूसरो को खोने से डरता है
जबकि खुद की खुद में  तलाश
अब भी जारी है।


हॅंसने  क लिए भी कारण की आवश्यकता है
बिना बात मुस्कुरा दे, तलाश अब  भी जारी है।


दूसरो को सताने के तो हज़ार तरीके  है
उनको हॅंसाने के एक तरीके की तलाश अब भी जारी है।


खुद को इंसान तो कहते है हम सब
बस खुद में इंसानियत की तलाश अब भी जारी 

- जीवन

HINDI KAVITA हिंदी कविता -: RAAHI राही

राही 




 क्या हुआ जो देर से जग कर ,
सूर्योदय की लालिमा को भूल गया।
 उठा रात भर मेहनत को और,
चंद्र सी शीतलता को मैं पा लिया।

 सूर्य के सामान अनवरत,
 तपना न सीखा तो क्या!
चंद्र के समान हर हाल में
शीतल रहना सीख़ गया।

किसी को दिखा न दिखा तो क्या,
पर चलते रहना मै  सिख गया।

शीर्ष के गुमान का पता शायद,
न चंद्र को है और न मुझको
हमको तो अन्धकार में ही है चमकना
और उसी अंधकार में विलीन हो जाना

सूर्य की तरह दुनिया को,
अपने प्रकाश का गुलाम नहीं बनाना
चन्द्रमा की तरह है, चमकना सीखना
अपने होने से ज्यादा न होने का एहसास है कराना

शून्य से शुरू कर जीवन के,
शीर्ष तक मुझको है  जाना
और शीर्ष से फिर एक बार
शून्य में जाकर  विलीन हो जाना
घटना है, बढ़ना है पर
अनवरत चलते है जाना।

जितना घना हो, अँधियारा जग का
उतना मुझको है, सवरना
हर अँधियारे के रही का,
साथी मुझको है  बन जाना ।
                                                                     

                       - जीवन


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