हे नारी
आत्म -संयमियो का
संयम तेरे आगे डोला है
तुलसी, सूर, कालिदास भी
तेरी जय-जय बोला है
यही सोचता हूँ
क्या तू ही अबला है ?
पुरातन में
रामायण, महाभारत
तूने ही करवाये है
पृथ्वीराज, राणा रतन को
युद्ध तूने ही हरवाये है
तेरे रूप भी तो विरले से
फिर भी, क्या तू ही अबला है
जानना चाहता हूँ
तेरे रंग में, रूप में, काया में
चुंबकीय क्षेत्र का
मान कितने टेस्ला है ?
तेरे रूप अनेक इस मंचन में
बस तू ही श्रेष्ट नायिका
सर्वसम्मति का
यही अघोषित फैसला है
तेरे मोहपास में
फसने वाला हर नर पगला है
लगता है
तेरे आकर्षण में, जड़ होने का
मेरा नंबर अगला है
यही यक्ष प्रश्न
कचोट रहा मन को अब भी
हे नारी !
हे बला ! क्या तू ही अबला है ?
-मुकुंद
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