गुरु
गुरु बिना कौन गुरुत्व को पाता है ?
पात्र वही इसका , जो गुरु को भाता है।
प्रमाणित हुआ यही चिरकाल से,
छद्म-वेशी कर्ण भी ना बचा गुरु-श्राप-भाल से।
बताओ सर्वश्रेष्ठ कौन धनुर्धारी था ?
वीर प्रसूता इस पावन धरा का,
गुरु-सान्निध्य पा अर्जुन ही भारी था।
अभागा एकलव्य वही इस जगत का,
जो नर होकर भी गुरु कृपा न पाता है।
गुरु-छत्र न जिसने पाया हो,
कीर्ति-सुयश की अमर पताका,
दिग-दिगन्त वह फहरा न पाता है।।
हिंदी कविता
हिंदी कविता
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