आज कलम से कागज पे विश्वास लिख रहा हूँ।
अस्कों से भीगे हुए अहसास लिख रहा हूँ।
वक्त से दब गए थे जो लम्हे उन
कुछ एक लम्हों का आगाज लिख रहा हूँ।
अंजाम की परवाह नहीं है मुझे
बस ख्वाइसों की दरकार है
मेरे सपनों की उड़ान से तेज
इस समय की रफ्तार है।
मुखातिब होने को कल से
मैं यथावत चल रहा हूँ।
मुनासिब होने को सब से
व्यथा की अनल में जल रहा हूँ।
मुक्ति का मार्ग कठिन है
व्याकुल मन पर संशय है
पर अनिमेष चला हूँ मैं
मेरा अस्तित्व अभय है।
अपने सपने बुनने के लिए
अभी सागर मथना बाकी है
अपना जीवन गढ़ने के लिए
अभी सार्थक चलना बाकी है।
यद्यपि चलना दूभर है
सूरज सर के ऊपर है
पर सविवेक चला हूँ मैं
मेरा व्यक्तित्व निर्भय है।
कल की चिंता उद्विग्न कर देती है
सरल मन को विच्छिन्न कर देती है
तब समेटता हूँ खुद को मैं
जब यथार्थता खिन्न कर देती है।
अब ललाट को चमकाना है
और भय को धमकाना है
अब निर्भीक चला हूँ मैं
मेरा लक्ष्य विजय है।
- कुलदीप कार्की
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