राही
क्या हुआ जो देर से जग कर ,
क्या हुआ जो देर से जग कर ,
सूर्योदय की लालिमा को भूल गया।
उठा रात भर मेहनत को और,
चंद्र सी शीतलता को मैं पा लिया।
सूर्य के सामान अनवरत,
तपना न सीखा तो क्या!
चंद्र के समान हर हाल में
शीतल रहना सीख़ गया।
किसी को दिखा न दिखा तो क्या,
पर चलते रहना मै सिख गया।
शीर्ष के गुमान का पता शायद,
न चंद्र को है और न मुझको
हमको तो अन्धकार में ही है चमकना
और उसी अंधकार में विलीन हो जाना
सूर्य की तरह दुनिया को,
अपने प्रकाश का गुलाम नहीं बनाना
चन्द्रमा की तरह है, चमकना सीखना
अपने होने से ज्यादा न होने का एहसास है कराना
शून्य से शुरू कर जीवन के,
शीर्ष तक मुझको है जाना
और शीर्ष से फिर एक बार
शून्य में जाकर विलीन हो जाना
घटना है, बढ़ना है पर
अनवरत चलते है जाना।
जितना घना हो, अँधियारा जग का
उतना मुझको है, सवरना
हर अँधियारे के रही का,
साथी मुझको है बन जाना ।
- जीवन
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