तकलीफे तो बहुत मिलती रही है मुझे जमाने में
खुद के गम भूला बैठा हूँ मैं अपनों को मनाने में।।
खता इतनी हुई की सब पर एतबार किया मैंने
ज़िन्दगी दाव पर लगा दी गैरो को अपना बनाने में।।
मोहब्बत के फूलो से बगिया को महकाना चाहा था
किसी ने कसर नहीं छोड़ी राहो में कांटे बिछाने में।।
उम्र भर दूसरो के दर्द को कम करने की कोशिश की
पर जमाना लगा रहा मेरे जख्मो में नमक लगाने में।।
ज़िन्दगी में कोई हमसफ़र नहीं मिला अपने बेगानो में
अब कोई आरजू नहीं रही मेरी ज़िंदा रहने की ज़माने में।।
-अनिल
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