Wednesday, March 4, 2020

एक शांत ढलती शाम (ek shaant dhalti shaam)




                        एक शांत ढलती शाम 


कभी कभी शहर से दूर, अपनो  से दूर रहने का अफ़सोस तो होता है, पर ऐसा कुछ देख कर मन  शांत ज़रूर हो जाता है।
प्रकृति से जुड़े  रहने का एक अपना ही मज़ा है। सूरज की जब ये हलकी सी चमक आँखों पर पड़ती है, तो एक अजीब सा एहसास आपको करा जाती है। इस सुकून को शब्दो मे समझा पाना बहुत मुश्किल है। 
ऐसा लगता है, मानो ये सूरज आपको कह जाता है, कल तक का इंतज़ार करना यही मिलेंगे।  अगले दिन आप होते हो, सूरज भी, बस उसका मिज़ाज़ कुछ बदल जाता है , वो कल से अलग कल से नया होता है एक नए रूप के साथ। 

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