चलते जाना
मुझे चलते जाना
मेरे सब्र का बाँध, अभी टूटा नहीं है ।
थका जरूर हूँ, लेकिन गंतव्य से पग छूटा नहीं है ।।
हार मानना आदत नहीं, बस थोडा़ आराम ही कर रहा था ।
भ्रमित नहीं, लेकिन समय कुछ भ्रामकों के नाम कर रहा था ।।
मानता हूँ अभी भी, चाल मेरी धीमी जरूर है ।
जमाने की चिंता नही, आदत उसकी युगों से मशहूर है ।।
जागा हूँ बस नींद से, भोर तो अभी आयी है ।
भूत मे जो गया सो गया, उमंग तो अभी लायी है ।।
रास्ता कितना भी कठिन हो, मजा तो इसी में है ।
लहरें चाहे बडी़ हों, रोमांच तो बस कश्ती में है ।।
धीरे - धीरे ही सही, जो सोचा है वो पाना है ।
बस इतना ही याद है, मुझे चलते जाना है। चलते जाना है ।।
चलते जाना है........
- मुकुंद
- मुकुंद
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