न जाने चलते-चलते सुबह सवेरे हम ऐसे कितनी ओस की बूंदो को कुचल देते है अपने पाँव तले और फिर इनपर ही इल्जाम लगा देते है की हमको भीगा दिया इन्होने।
पर आज ये कुछ और ही बया कर रही है, कुछ अलग ही चमक है इनकी, कुछ अलग ही मिज़ाज़ है इनका, आज किसी को इनसे शिकायत नहीं होगी। अब सबको सुकून देंगी ये बूँदे या शायद कहुँ पानी से बने मोती।
No comments:
Post a Comment