खेलने का मन है, कूदने का मन है
आज फिर बच्चा बनने का मन है
दौड़ने का मन है चिखने चिल्लाने का मन है
बिना डरे जिंदगी जीने का मन है
क्योंकि आज मुझे जीने का मन है
आज मुझे बच्चा बनने का मन है
ये जीना भी क्या जीना था
जिसमें ना भविष्य कि चिंता थी
ना भूतकाल के दुखो का रोना था
बस आज था और अभी में जीना था
खेलो का कोई अर्थ नही था
ना तो उनमे जीतना, ना हारना था
बस कुछ खेल थे जो खुशी के लिए थे
खुशी थी जो इन खेलों में थी
हर कोई सहयोगी हो जाता था
प्र्तिददिता कि कोई जगह नही थी
बारिश थी और उसकी बूँदे थी
एक नाव थी बिना पतवार की
बहती थी जो पानी के साथ
और हम दौड़ते थे उस नाव के साथ
उस समय बारिश में भीगने मे खुशी थी
आज है बारिश में भीगने का डर
उस समय खेलने मे खुशी छुपी थी
आज हार-जीत में खुशी और गम
समय आगे बढ़ता जा रहा है
और हम उसमें उलझ जा रहे है
बचपन से दूर हो हम कही न कही
खुद से दूर होते जा रहे है
आज मै इस को देख चाह रहा हूँ
एक बार फिर अपने बचपन से जुड़ना
जब जिंदगी बस एक खेल सी थी
और हम बिना किसी किरदार के थे।
Waao.....God bless you.
ReplyDeletethanks
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