तुम्हारी मौजूदगी
तुम्हारा होना मेरे लिये उस वसन्त की तरह है,
जिस का इंतज़ार मैनें तब से किया है,
जब मैनें पहला वसन्त देखा था, और तुम्हे भी,
ये वसन्त बहुत इतरा रहा है,
फूलों की पंखुडियाँ और नाजुक हो रही हैं
बहार आने का ये अलग ही ढंग है,
शायद तुमसे ही सीखा है मौसम ने ये मिज़ाज
हर रोज पहले से ज्यादा रौनक चेहरा तुम्हारा,
क्या तुम्हें पता है, इस बार वसन्त अपना,
कुछ रंग तुम में छोड़ गया है,
लेकिन चुप-चाप, आहिस्ता-आहिस्ता,
दबे पांव जंगलौं में, तुम्हारा जादू,
तुम्हारी चंचल हंसी की तरह, घुल रहा है,
गुम-सुम खड़ी तुम, झरने के निनाद में,
चुपके से मेरे कानों में वो बात बोल जाती हो,
जो सिर्फ मैं-तुम और शायद ये वसन्त ही जानता है,
और मैं वो ख़ामोश पानी हूँ,
जिसमें तुम अपनी परछाई देख सकती हो,
वो विरान रात जिसे सिर्फ तुम्हारा इंतजार रहा हमेशा।
- अमित
ये कविता मुझे अमित दवारा भेजी गयी है, क्या खूब है इनका अपने प्यार को इजहार करने का तरीका।
धन्यवाद अमित
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